क्या आप जानते है देश पर कितना कर्जा है, अगर नही तो आइये हम बताते हैं

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Posted by Chief Editor Manish Saklani on 2023-12-28 09:39:22 |

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क्या आप जानते है  देश पर कितना कर्जा है, अगर नही तो आइये हम बताते हैं

पहले तो यह समझते हैं कि देश को कर्ज क्यों लेना पड़ता है? किसी भी देश की सरकार की आमदनी कम होती है और खर्च ज्यादा। घाटा पूरा करने के लिए सरकार कर्ज लेती है। कर्ज सरकार या तो अपने देश में बॉण्ड बेचकर उठाती है या विदेश से। अवधि पूरी होने पर सरकार को पैसे ब्याज समेत लौटाने होते हैं। ये ऐसा दुश्चक्र है कि सरकार इससे बाहर नहीं निकल पाती है। हर साल घाटा पूरा करने के लिए सरकार को और कर्ज लेते रहना पड़ता है। भारत ही नहीं दुनिया के तमाम बड़े देश कर्ज में डूबे हुए हैं। पेट्रोलियम कारोबार में लगे कुवैत या ब्रुनेई जैसे छोटे देशों पर ना के बराबर कर्ज है।  इनकी आबादी बहुत कम है और आमदनी बहुत ज्यादा। अब हल्ला इस बात पर है कि दस साल में भारत पर इतना कर्ज बढ़ गया। अर्थशास्त्री आँकड़े को जस का तस नहीं देखते हैं। इसे देश की GDP के अनुपात में देखा जाता है। देश पर कर्ज GDP के 60% से कम है तो लो रिस्क है। 90% से कम है तो मोडरेट रिस्क और 90% से ज़्यादा है तो हाई रिस्क। भारत पर कर्ज GDP के अनुपात में 81% है। जैसे बैंक यह देखता है लोन देने से पहले कि आपकी आमदनी कितनी है? उम्र कितनी है? उसी तरह देश के मामले में सेहत जाँचने का पैमाना GDP की तुलना में कर्ज का अनुपात है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष यानी IMF की रिपोर्ट में आगे चलकर हालात बिगड़ने का अंदेशा जताया गया है। आप यह चार्ट देखेंगे तो पिछले 20 साल में ये रेशियो घट रहा था। वर्ल्ड बैंक का डेटा 2018 तक ही उपलब्ध हैं। आप ट्रेंडलाइन देखेंगे तो 2003-2005 के बीच यह पीक पर था और फिर लगातार घटता रहा। 2020 में कोरोनावायरस के कारण सरकार को कर्ज लेना पड़ा जबकि GDP में भारी गिरावट आई। इस कारण रेशियो 88% तक पहुंच गया था। अब यह घटकर 81% आ गया है। IMF का अंदेशा है कि 2028 में यह आँकड़ा 100% होगा यानी खतरे के निशान से ऊपर। सरकार इससे सहमत नहीं है।  IMF यह भी कह रहा है कि हालात बेहतर रहे तो यह आँकड़ा 70% तक पहुँच जाएगा। जापान, अमेरिका और चीन जैसे देशों में यह आँकड़ा 100 से पार है।  अनुपात को एक मिनट साइड में रख दें तो यह देखना जरूरी है कि कर्ज खर्च कहाँ हो रहा है? आप कर्ज लेकर घर खरीदते हैं तो संपत्ति बना रहे हैं लेकिन छुट्टी मनाने के लिए कर्ज ले रहे हैं तो फौरी मजा मिलेगा। लाँग टर्म में कुछ हासिल नहीं होगा। à¤µà¤¹à¥€à¤‚ बात सरकार पर लागू होती है कि कर्ज लेकर रेवड़ी बाँट रही है या रोड बना रही है? यह आकलन जटिल विषय है। इस एक न्यूज़ लेटर में समेटना मुश्किल है। बजट में दिए गए दो आँकड़ों से समझने की कोशिश करते हैं। 10 लाख करोड़ रुपये रेलवे, रोड और अन्य संपत्तियों के निर्माण में खर्च होने का अनुमान है। 2019-20 के मुक़ाबले यह खर्च तीन गुना है। यह कर्ज का अच्छा उपयोग हैं वहीं फ़ूड, खाद और पेट्रोलियम सब्सिडी मिलाकर 4 लाख करोड़ रुपये खर्च होना है। 2019-20 के लिए यह आँकड़ा 3 लाख करोड़ रुपए था। जिस अनुपात में संपत्तियों पर खर्च बढ़ा है उससे कम अनुपात में सब्सिडी बढ़ी है। इसका मतलब कतई नहीं है कि सब चंगा है। सरकार को फ़िज़ूलख़र्ची रोकने पर ध्यान देना होगा वर्ना कोरोनावायरस जैसे बड़े संकट फिर आने पर हम मुश्किल में पड़ सकते है।

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